जब भी मैं अपनी ड्यूटी के तैयार होता हु तो मेरी पत्नी मेरे से पहले तैयार मिलती है। अक्सर वह मुझे गाड़ी तक छोड़ने आती हैं और कहती हैं कि जल्दी आना ! गाड़ी तक छोड़ना तो ठीक है पर ” जल्दी आना “? मुझे कुछ हज़म होने जैसा लग नहीं रहा था । एक दिन मैंने बोल ही दिया , देखो मुझे ऐसे मत कहा करो | मैं तम्हारी हर बात मानता हूँ किसी दिन ये भी बात मान ली तो मैं चाहकर भी नहीं आ पाऊगां | बोली , ऐसा क्यू कह रहे हैं आप , मैंने कहा और क्या कहूं |

मैंने कहा तुम कहा करो कि सुरक्षित आना , इससे ये होगा कि एक तो मैं बिना जल्दबाजी के गाड़ी चला लूगां। दुसरा यातायात के नियमों का अच्छे से पालन कर पाऊगां और तुम्हारे पास सुरक्षित भी आ पाऊगां । उस दिन के बाद वो मुझे यही कहती हैं कि ” सुरक्षित आना ”!!!!
इससे मुझे ये भी आभास होता है कि मेरा परिवार मुझे कितना चाहता है और मेरी कितनी चिंता करता है इस लिए मुझे यातायात के सभी नियमों का दुरुस्त पालन करके , सुरक्षित घर पहुंचना मेरा कर्त्यव्य ही नहीं बल्कि मेरे परिवार के प्रति मेरा प्रेम भी जाहिर करता है । जब मैं पुलिस में प्रशिक्षण पर था तो मेरे एक प्रशिक्षक कहते थे कि ट्रेफिक रुलस सिर्फ दूसरों के लिए ही नही बने हैं , पुलिस के लिये भी ये ही रुलस है। कुछ भी हो नियमों का पालन तो हर हाल में करना ही चाहिए ।

NCRB की रिपोर्ट के अनुसार भारत में हर साल लगभग डेढ़ लाख के करीब लोग सड़क दुर्घटना में मरते हैं । सरकार दवारा कड़े नियम लागू करने के बाद भी कोई खास असर दिख नहीं रहा है । मेरे हिसाब से , जब भी कोई घर से कोई वाहन लेकर निकले तो उसे घर का कोई एक संदस्य ये जरूर कहने वाला हो कि सुरक्षित आना , न कि जल्दी आना , तो कुछ ना कुछ फर्क जरूर पड़ेगा ।
ये छोटे से दो शब्द बहुत लोगो की जिन्दगी बचा सकते हैं । साथ ही बहुत सारे परिवार उजड़ने भी बच सकते है। अगर आप लोगों ने मेरे इस छोटे से लेख को फोलो और फार्वर्ड किया तो मेरा भी इस लेख को लिखने का उददेश्य सफल हो जाएगा ।
सि . सुखबीर सिंह हरियाणा पुलिस गुरुग्राम